Poster of Dastaavez Episode 05 featuring renowned Hindi writer Shivmurti in an in-depth literary conversation on rural realism and social issues in Hindi literature.
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शिवमूर्ति : दस्तावेज एपिसोड 05 

साक्षात्कार तिथि: 17 अक्तूबर 2018 | प्रकाशन तिथि: 2 अगस्त2025

“दस्तावेज़” की पाँचवीं कड़ी लेकर आई है समकालीन हिंदी साहित्य की एक ऐसी प्रभावशाली आवाज़ से मुलाक़ात, जिन्होंने ग्रामीण यथार्थ, जातीय संघर्ष, स्त्री चेतना, और सामाजिक बदलाव को अपनी कहानियों का मूल स्वर बनाया – शिवमूर्ति।

कथाकार शिवमूर्ति से, जिनकी कहानियाँ खेत, खलिहान, जाति, वर्ग और स्त्री-जीवन के संघर्षों की जीवंत आवाज़ हैं। दस्तावेज़ सिर्फ़ एक साक्षात्कार श्रृंखला नहीं, बल्कि हमारे समय की साहित्यिक यात्रा है। इस एपिसोड में कृष्ण समिद्ध के साथ बातचीत में शिवमूर्ति खुलकर बात करते हैं अपने लेखन, संवेदना, ग्रामीण यथार्थ और कथा की ताक़त पर।

उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में जन्मे शिवमूर्ति हिंदी कहानी, उपन्यास, और सामाजिक यथार्थ के प्रमुख कथाकारों में से एक हैं। उनकी कहानियाँ  कसाईबाड़ा, तिरिया चरित्तर, भरतनाट्यम, सिरी उपमा जोग – न सिर्फ साहित्य में, बल्कि रंगमंच और सिनेमा में भी जीवंत प्रस्तुति बन चुकी हैं। उनका लेखन केवल कथा शिल्प नहीं, बल्कि समाज का दस्तावेज़ है , वह यथार्थ जो खेत, खलिहान और गाँव की धूल में साँस लेता है।

शिवमूर्ति हिंदी साहित्य की वह संवेदनशील आवाज़, जिसने ग्रामीण भारत की ज़िंदगी, संघर्ष, और बदलाव को कहानियों में सजीव किया। उनकी कहानियाँ किसी दस्तावेज़ की तरह समय, समाज और सत्ता के यथार्थ को उजागर करती हैं। शिवमूर्ति समकालीन Hindi literature के एक अनूठे कथाकार हैं, जिनकी कहानियाँ ग्रामीण भारत की धड़कन, संघर्ष और सच्चाइयों को अद्वितीय गहराई के साथ चित्रित करती हैं। उनका लेखन न केवल साहित्यिक, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

उनकी कहानियाँ हिंदी कथा-साहित्य की विरल उपलब्धियाँ हैं, जो जाति, वर्ग, लैंगिकता और सत्ता के यथार्थ को अभिव्यक्त करती हैं। कथा-लेखन के क्षेत्र में प्रारम्भ से ही प्रभावी उपस्थिति दर्ज करानेवाले शिवमूर्ति की कहानियों में निहित नाट्य सम्भावनाओं ने दृश्य-माध्यमों को भी प्रभावित किया। कसाईबाड़ा, तिरिया चरित्तर, भरतनाट्यम तथा सिरी उपमाजोग पर फ़िल्में बनीं, जबकि ‘तर्पण’ उपन्यास पर एक फ़िल्म प्रस्तावित है। तिरिया चरित्तर, कसाईबाड़ा और भरतनाट्यम के हज़ारों मंचन हुए। अनेक देशी-विदेशी भाषाओं में रचनाओं के अनुवाद हुए। कुछ कहानियों का बांग्ला, पंजाबी, उर्दू, उड़िया, कन्नड़ आदि भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

उपन्यास ‘त्रिशूल’ उर्दू एवं पंजाबी में, ‘तर्पण’ जर्मन में और ‘आख़िरी छलाँग’ कन्नड़ में अनूदित है। साहित्यिक पत्रिकाओं यथा – मंच, लमही, संवेद, नया ज्ञानोदय, समावर्तन तथा इंडिया इनसाइड ने इनके साहित्यिक अवदान पर विशेषांक प्रकाशित किए। पहली कहानी बीकानेर से प्रकाशित वातायान में ‘पानफूल’ शीर्षक से 1968 में प्रकाशित हो गई थी। 1976 में दिनमान द्वारा आयोजित अपढ़ संवाद प्रतिगिता में प्रथम पुरस्कार पाने से पुनः लेखन की ओर झुकाव हुआ। जनवरी 80 में धर्मयुग में ‘कसाईबाड़ा’ कहानी प्रकाशित हुई। 1991 में राधाकृष्ण प्रकाशन से ‘केशर-कस्तूरी’ कहानी-संग्रह और 1995 एवं 2004 में राजकमल प्रकाशन से ‘त्रिशूल’ और ‘तर्पण’ उपन्यास प्रकाशित हुए। 2008 में प्रकाशित तीसरा उपन्यास ‘आख़िरी छलाँग’ विशेष रूप से चर्चित रहा।

इस एपिसोड में शिवमूर्ति चर्चा करते हैं अपनी कथा लेखन की प्रक्रिया, ग्रामीण भारत का यथार्थ, जाति और वर्ग की जटिलता, स्त्री जीवन की अनकही कहानियाँ, और लेखक के रूप में उनके आत्मसंघर्ष और सामाजिक प्रतिबद्धता।

दस्तावेज़ में यह बातचीत पत्रकारिता नहीं, एक साहित्यिक श्रवण अनुभव है, जहाँ कैमरा केवल है, जहाँ कैमरा केवल चेहरा नहीं पकड़ता, वह मौन, संवेदना, और अंदर की कविता को भी दर्ज करता है। शिवमूर्ति की कहानियाँ कोई कल्पना नहीं, वे समाज के भीतर से उपजी आवाज़ें हैं आवाज़ें जो कहती हैं कि साहित्य केवल पढ़ा नहीं, महसूस किया जाता है।

यह एपिसोड उन सबके लिए ज़रूरी है, जो हिंदी साहित्य, ग्रामीण जीवन, लेखक की सोच, और सामाजिक यथार्थ में रुचि रखते हैं।

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