मैत्रेयी पुष्पा : दस्तावेज एपिसोड 04
साक्षात्कार तिथि: 1 फ़रवरी 2019 | प्रकाशन तिथि: 12 जुलाई 2025
‘दस्तावेज़’ एक साक्षात्कार श्रृंखला की इस यात्रा की अगली कड़ी हमें ले जाती है उस स्त्री स्वर तक, जिसने नारी अस्मिता, ग्रामीण जीवन और सामाजिक विद्रोह को अपने शब्दों में अनसुनी तीव्रता के साथ रूपायित किया है-मैत्रेयी पुष्पा।
1 फ़रवरी 2019 को लिया गया यह साक्षात्कार, 12 जुलाई 2025 को ‘दस्तावेज़’ के माध्यम से प्रकाशित हो रहा है। यह केवल एक लेखिका से बातचीत नहीं है, यह उनकी स्मृतियों, संघर्षों और बेबाक दृष्टिकोण को समझने की एक रचनात्मक कोशिश है।
मैत्रेयी पुष्पा, जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के सिकुर्रा गाँव में हुआ और जिन्होंने बुंदेलखंड की मिट्टी से अपने अनुभवों को सींचा, हिंदी साहित्य में एक असाधारण जनपक्षधर स्वर बनकर उभरी हैं।
‘दस्तावेज़’ की यह कड़ी लेखन के उस ठोस, असुविधाजनक, लेकिन ज़रूरी भूगोल को उजागर करती है, जहाँ स्त्री न केवल लिखती है, बल्कि सामाजिक संरचनाओं को चुनौती देती है। इस एपिसोड में मैत्रेयी जी बात करती हैं-अपनी रचना-यात्रा के संघर्षों की, पितृसत्ता से टकराते स्त्री लेखन की और उस भाषा की, जो ग्रामीण चेतना, लोक संस्कृति और विद्रोह को एक साथ साधती है।
उनका लेखन ‘गुड़िया भीतर गुड़िया’ जैसी आत्मकथाओं से लेकर ‘चाक’, ‘इदन्न मम’, ‘अल्मा कबूतरी’ जैसे उपन्यासों तक स्त्री के अंत:संघर्षों, उसकी सामाजिक स्थितियों और उसकी चेतना की पड़ताल करता है।
यह एपिसोड, कैमरे के उस ठहरे हुए क्षण की तरह है, जहाँ लेखिका की आँखों में वह कविता चल रही होती है, जो पन्नों पर नहीं, आत्मा की गहराई में लिखी जाती है। ‘दस्तावेज़’ उस मौन को पकड़ने की कोशिश करता है, जहाँ लेखक की वाणी ठिठकती है, लेकिन उसकी दृष्टि बोलने लगती है।
यह संवाद मैत्रेयी पुष्पा की लेखकीय चेतना को नहीं, बल्कि उस स्त्री दृष्टि को उजागर करता है जो समाज की परतों में दबे हुए यथार्थ को निर्भीक स्वर देती है। यह वीडियो न केवल साहित्य में रुचि रखने वालों के लिए, बल्कि उन सभी के लिए आवश्यक है जो समाज के भीतर दबी आवाज़ों को सुनना चाहते हैं।
‘दस्तावेज़’ की यह कड़ी एक दस्तावेज़ है उस स्त्री साहस की, जो परंपरा से टकराने का जोखिम उठाती है — और पाठकों के हृदय में प्रतिरोध की नई चिंगारी जगाती है।