राजेश जोशी : दस्तावेज एपिसोड 02
यह एक तथ्य है कि ‘दस्तावेज़’ एक साक्षात्कार श्रृंखला है। लेकिन ‘दस्तावेज़’ केवल एक श्रृंखला नहीं, बल्कि मौन की एक लंबी यात्रा है। 10 फरवरी 2019 को दस्तावेज़ की यह यात्रा पहुँची एक ऐसे कवि के पास, जिनकी कविता हिंदी साहित्य के सामाजिक, राजनीतिक और मानवीय सरोकारों की एक सशक्त गूंज बन चुकी है-राजेश जोशी। यह दूसरा एपिसोड एक संवाद नहीं, बल्कि एक कवि की चेतना, स्मृति और संघर्ष की अंतर्यात्रा है। यह साक्षात्कार पटना में हुआ था। यह उस क्षण की तलाश है, जहाँ कविता केवल पंक्तियों में नहीं, बल्कि जीवन की चुप परतों में आकार लेती है।
राजेश जोशी, जिनका जन्म 1946 में मध्यप्रदेश के नरसिंहगढ़ में हुआ, हिंदी कविता के उन विरल हस्ताक्षरों में से हैं, जो चार दशकों से अधिक समय से अपनी गहन, प्रामाणिक और जन-सरोकारों से जुड़ी कविताओं के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने न केवल कविताएं, बल्कि कहानियाँ, नाटक, निबंध और अनुवाद भी लिखे हैं-हर विधा में भाषा और विचार का गहरा साक्षात्कार रचते हुए।
उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ ‘एक दिन बोलेंगे पेड़’, ‘मिट्टी का चेहरा’, ‘नेपथ्य में हँसी’ और ‘दो पंक्तियों के बीच’ जैसी रचनाओं में एक कवि का सधा हुआ स्वर है, जो जीवन की टूटन और संभावनाओं के बीच उम्मीद की एक चुप लौ जलाता है। उनकी कहानियाँ और नाटक भी उसी सामाजिक संवेदना से जुड़े हैं, जिनमें ‘सोमवार और अन्य कहानियाँ’, ‘कपिल का पेड़’, ‘जादू जंगल’, ‘अच्छे आदमी’ और ‘टंकारा का गाना’ शामिल हैं।
इस एपिसोड में हम न केवल राजेश जोशी की कविताओं की दुनिया में प्रवेश करते हैं, बल्कि यह भी समझते हैं कि कैसे एक कवि, गिरते हुए समय की धूल से भी कविता की चिनगारी ढूँढ़ लेता है। उनके शब्दों में सदी के छोर पर खड़े देष के संघर्षों, असहायताओं, और हिंसाओं की छवियाँ हैं और साथ ही है कविता की वह मशाल, जो इन अंधेरों से पार ले जाने की जिद रखती है।
इस एपिसोड में ‘एक दिन बोलेंगे पेड़’ हो या ‘मिट्टी का चेहरा’, राजेश जोशी की कविताएं मानो समय के खिलाफ दर्ज की गईं वे गवाही हैं, जो चुपचाप सब कह जाती हैं। दस्तावेज़ में हम केवल राजेश जोशी की कविताओं को नहीं सुनते, हम उस यात्रा को महसूस करते हैं जिसमें भाषा, स्मृति और प्रतिरोध एक त्रयी में मिलते हैं। यह एपिसोड उस ठहरे हुए क्षण को पकड़ता है, जहाँ एक कवि, एक नागरिक और एक संवेदनशील आत्मा तीनों एक हो जाते हैं।
यह श्रृंखला केवल कवि से प्रश्न नहीं करती, बल्कि उसकी आँखों में छिपी कविताओं को पढ़ने की कोशिश करती है। “दस्तावेज़” की दृष्टि वही है, जो शब्दों के परे जाकर उस मौन को समझती है, जिसमें कविता जन्म लेती है।
राजेश जोशी से यह संवाद एक ऐसी कविता है, जिसे पढ़ने के लिए आपको केवल आँखें नहीं, एक सजग संवेदना चाहिए। दस्तावेज़ का यह एपिसोड उसी संवेदना की दस्तक है।