दस्तावेज
यह एक तथ्य है कि ‘दस्तावेज़’ एक साक्षात्कार श्रृंखला है। लेकिन ‘दस्तावेज़’ केवल एक श्रृंखला नहीं, बल्कि मौन की एक लंबी यात्रा है, मन के उस कोने तक, जहाँ हर कवि-कलाकार की आत्मा में कुछ जन्म लेता है। राजेश जोशी-अनामिका-नरेश सक्सेना के होंठों से झरती हुई भाषा जब रुकी, तो कैमरा भी स्थिर हो गया दस्तावेज़ उन ठहरे हुए क्षणों की भूगोल बनाता है, जिनमें कलाकार की स्मृति, समय की राख और रचना की आग साथ-साथ जलती हैं। श्रृंखला में जो दिखाई देता है, वह उतना ही सत्य है जितना वह जो नहीं दिखाई देता।
यह उस स्थान की तलाश नहीं जहाँ कवि जाते हैं, बल्कि उस क्षण की तलाश है जहाँ कवि बनते हैं, जहाँ कला संभव होती है …दृश्य और अदृश्य के उस मध्यवर्ती प्रदेश में, जिसे केवल मौन जानता है… और शायद कविता भी। यह श्रृंखला हिंदी साहित्य और कला की उस बहुरंगी भूमि की सैर कराती है, जहाँ भाषा केवल एक माध्यम नहीं, बल्कि एक जीवंत अनुभव बन जाती है।
प्रत्येक एपिसोड कवि-कलाकार के अंतर्मन को, उसकी चेतना को, और उसके समय से उसकी मुठभेड़ को जानना चाहता है। ‘दस्तावेज़’ संवाद करना चाहता है, लेकिन केवल शब्दों से नहीं। यह उस दृष्टि से संवाद करता है, जो कवि की आँखों में स्थायी रूप से निवास करती है, जिसमें हर अनुभव, हर असफलता, और हर कविता-कलाकृति की अदृश्य धड़कन बसती है।
राजेश जोशी जैसे कवि जब अपने लेखन की तहों को उघाड़ते हैं, तो दर्शक को भी अपने भीतर झाँकने का एक दुर्लभ अवसर मिलता है।यहाँ लेखक या कलाकार का आत्मसंघर्ष दृश्य बन जाता है और वह संघर्ष किसी रचना की पूर्वकथा नहीं, बल्कि उसका मर्म होता है।
श्रृंखला की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह कविता को पाठ से संवाद में रूपांतरित करती है। कैमरे के सामने कवि जब चुप होते हैं, तब भी उनकी आँखों में एक कविता चलती रहती है….”दस्तावेज़” उसे पढ़ने की इच्छा रखती है।
यहाँ संवाद किसी पत्रकारिक औपचारिकता की तरह नहीं, बल्कि साहित्य से अनुराग से ओतप्रोत एक साहित्यिक यात्राएं का प्रयास हैं, जिनमें कवियों की रचनात्मक प्रक्रिया, स्मृतियाँ, और समय से उनके संघर्ष, उनके आत्मसंघर्ष की परतें जानी जा सकी हैं।
“दस्तावेज़” को देखना किसी कविता को सुनने से अधिक, उसे महसूस करना है। यह श्रृंखला उस मौन को भी दर्ज करती है, जो पंक्तियों के बीच छूट जाता है और वहीं सबसे गहरा साहित्य होता है।
एक तरह से यह श्रृंखला यह समझने का साहस करना चाहती है कि कविता-कलाकृति केवल शिल्प नहीं, जीवन के अस्तित्व का एक मौन संकल्प है। दस्तावेज़, उसी खोई हुई सहज-जीवन-बुद्धि को पुनः ढूँढने का प्रयत्न है, कविता में, कलाकार में, मनुष्य में। दस्तावेज़, एक मौन यात्रा का प्रयास है कविता तक, कला तक।