ममता कालिया : दस्तावेज एपिसोड 01
9 सितम्बर 2018 को ‘दस्तावेज़’ की यह मौन यात्रा अपने पहले पड़ाव से आरंभ हुई-ममता कालिया के साथ एक गहरी, आत्मीय और संवेदनशील बातचीत के रूप में।
‘दस्तावेज़’ केवल एक श्रृंखला नहीं, बल्कि एक ऐसा प्रयास है जो कलाकार की उस आंतरिक भूमि तक पहुँचता है, जहाँ रचना जन्म लेती है,जहाँ शब्द मौन में बदल जाते हैं और मौन कला में। इसी भावना के साथ, पहला एपिसोड समर्पित हुआ उस लेखिका को, जिनकी लेखनी ने हिंदी साहित्य में स्त्री की आत्मस्वीकृति, समाज के द्वंद्व, और व्यक्तिगत अस्तित्व की जटिलताओं को रेखांकित किया—ममता कालिया।
02 नवम्बर 1940 को वृन्दावन में जन्मी ममता कालिया, हिंदी की उन विरल साहित्यकारों में हैं जिनकी उपस्थिति पिछले सात दशकों से हिंदी कहानी, उपन्यास, कविता, निबंध, नाटक और पत्रकारिता के हर मोर्चे पर जीवंत रही है। उनके भीतर एक सजग स्त्री की दृष्टि है, जो अनुभव की सतह को चीरकर सामाजिक यथार्थ और व्यक्तिगत अनुभूति का गहन आख्यान रचती है।
इस एपिसोड में, कैमरे ने न केवल उनके शब्दों को, बल्कि उनके मौन को भी सुना, उस मौन को जो हर रचनाकार की आत्मा में तपता है, और जो केवल तब प्रकट होता है जब कोई उसे पूछने नहीं, सुनने आता है।
यह संवाद केवल लेखकीय यात्राओं का दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक स्त्री की सांस्कृतिक चेतना, संघर्ष, और उसके भीतर पलती सृजन-चिंता का भी चित्र है। ममता कालिया की आवाज़ में जब ‘लड़कियाँ’, ‘दौड़’, ‘एक पत्नी के नोट्स’ जैसी रचनाएँ प्रतिध्वनित होती हैं, तब दर्शक केवल पाठक नहीं रह जाता, वह साक्षी बन जाता है उस यात्रा का, जिसमें जीवन, साहित्य और समय एक त्रयी बनकर गूंजते हैं।
यह एपिसोड ‘दस्तावेज़’ की उस मूल दृष्टि को मूर्त करता है, जो दृश्य और अदृश्य के बीच बसे साहित्यिक क्षणों को पकड़ने की कोशिश है। यह उस ठहरे हुए समय की तस्वीर है, जहाँ एक कवि, एक लेखिका, और एक स्त्री तीनों एक साथ बैठी मिलती हैं, अपने होने की कथा सुनाती हुईं।
दस्तावेज़, ममता कालिया के साथ इस प्रथम संवाद में, उस बिंदु को छूने का प्रयास करता है जहाँ लेखन शिल्प नहीं, बल्कि एक जीवनगत प्रतिज्ञा बन जाता है।