अनामिका : दस्तावेज एपिसोड 03
साक्षात्कार तिथि: 1 फ़रवरी 2019 | प्रकाशन तिथि: 17 मई 2025
‘दस्तावेज़’ की यह तीसरी कड़ी एक ऐसी कवयित्री की ओर हमें ले जाती है, जिनकी लेखनी में अनुभव, विमर्श और संवेदना का अनूठा संगम है-अनामिका।
बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में जन्मी और दिल्ली में शिक्षित अनामिका न केवल समकालीन हिंदी कविता की एक सशक्त आवाज़ हैं, बल्कि स्त्री-विमर्श की गहरी समझ और आलोचनात्मक दृष्टि के लिए भी जानी जाती हैं।
इस एपिसोड में, ‘दस्तावेज़’ कविता के उस अंतरग पथ पर प्रवेश करता है, जहाँ शब्द केवल विचार नहीं, बल्कि जीवन के अनुभव से उपजे मौन का रूप होते हैं।
हिंदी कविता की समकालीन दुनिया की सबसे सशक्त आवाज़ों में से एक, कवयित्री अनामिका का यह विशेष साक्षात्कार ‘दस्तावेज़’ शो के लिए लिया गया है। इस बातचीत में अनामिका कविता लिखने की अपनी प्रक्रिया, जीवन के अनुभवों और स्त्री स्वर की भूमिका पर गहराई से बात करती हैं। यह वीडियो हिंदी साहित्य, कविता, नारीवादी चिंतन और आत्मकथात्मक लेखन में रुचि रखने वालों के लिए एक अमूल्य दस्तावेज़ है।
अनामिका बताती हैं कि कैसे उनके बचपन, पारिवारिक अनुभवों और सामाजिक संघर्षों ने उनकी रचनात्मकता को आकार दिया। साक्षात्कार में वे कविता को आत्मा की भाषा मानती हैं , एक ऐसी भाषा, जो प्रतिरोध, प्रेम और पहचान की बातें करती है। ‘दस्तावेज़’ का यह एपिसोड एक आत्मीय यात्रा है ,जहाँ शब्दों से जीवन को समझने की कोशिश की जाती है।
अनामिका की कविताएं‘खुरदरी हथेलियाँ’, ‘समय के शहर में’, ‘बीजाक्षर’ सिर्फ साहित्यिक पाठ नहीं, बल्कि स्त्री की चेतना, संघर्ष और सामाजिक विमर्श की जीवंत दस्तावेज़ हैं।
अनामिका हिंदी नारीवादी लेखन की एक अधिक बौद्धिक और दार्शनिक प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे एक कवयित्री, आलोचक और शिक्षाविद् हैं जो मिथकशास्त्र, मनोविश्लेषण और इतिहास से प्रेरणा लेकर लिंग को प्रश्नांकित करती हैं। मिथकों और इतिहास की पुनर्प्राप्ति: अनामिका प्राचीन मिथकों को पुनर्लेखित करती हैं ताकि स्त्री स्वरों और अनुभवों को केंद्र में लाया जा सके , यह कार्य कुछ हद तक पश्चिम में एड्रिएन रिच और जूडिथ बटलर के प्रयासों के समान है। स्त्री भाषा की खोज: वे भाषा के साथ प्रयोग करती हैं, एक ऐसी ‘स्त्री वाणी’ की तलाश करती हैं जो पितृसत्तात्मक व्याकरण का प्रतिरोध करती हो। उल्लेखनीय कृतियाँ: “टोकरी में दिगंत” : ग्रामीण बिम्बों, पौराणिक रूपकों और शहरी निराशा को स्त्रीवादी दृष्टिकोण से जोड़ता है। “पानी को सब याद था”: यह कविता स्मृति, तरलता और प्रतिरोध को एक स्त्रीवादी रूपक के रूप में प्रस्तुत करती है। अनामिका की नारीवादी दृष्टि अधिक प्रतीकात्मक और बहुस्तरीय है, जो सीधे सहानुभूति नहीं बल्कि आलोचनात्मक व्याख्या को आमंत्रित करती है।
‘दस्तावेज़’ की यह कड़ी एक औपचारिक इंटरव्यू नहीं है, बल्कि एक कवयित्री के आत्मसंघर्ष, स्मृति और रचनात्मक ताप को सुनने-समझने की एक सृजनात्मक यात्रा है।
कैमरा यहाँ केवल दृश्य नहीं कैद करता, बल्कि मौन की उस लय को पकड़ने की कोशिश करता है, जहाँ कविता जन्म लेती है।
यह एपिसोड अनामिका की साहित्यिक यात्रा को नहीं, बल्कि उस भीतरी स्थल को उजागर करता है जहाँ उनका लेखन शिल्प नहीं, जीवन का आत्मस्वर बन जाता है।
यह संवाद दर्शक को केवल सुनने नहीं, भीतर तक महसूस करने का निमंत्रण देता है,जहाँ कविता, कला और आत्मा एक साझा मौन में आकार पाते हैं।