कृष्ण समिद्ध

लक्की जी गुप्ता का माँ मुझे टैगोर बना दे – सार्थकता और सीमा

कृष्ण समिद्ध कभी-कभी किसी कला के प्रति कलाकार का समर्पण और अभ्यास की प्रक्रिया का प्रभाव इतना बड़ा हो जाता है कि उसकी कला प्रस्तुति पर बात करना गैर जरूरी लगता है। लक्की जी गुप्ता उसी तरह के कलाकार हैं, जिन्होनें निरंतर यात्रा करते हुए अपने रंगकर्म की प्रक्रिया के कद को धीरे-धीरे इतना बड़ा …

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बहरुल इस्लाम बनाम चेखव : मूल रचना बनाम नाट्यांतरण में पाठ और चरित्र

 “मैं पहले ही कह चुका हूं कि चेखेव के ‘सीगल’ नाटक से पहली बार परिचित होने पर मुझे नाटक का सार, सुगंध और सौंदर्य समझ में नहीं आया।” [ संदर्भ –1, Stanislavski] स्तानिस्लावस्की को यह एहसास सीगल की सफल प्रस्तुति के बाद हुआ था। स्वयं चेखव भी ‘सीगल’ की प्रस्तुति में असफल रहे थे। 1896ई …

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Bloody Daddy Review

Nine Sins of Ali Abbas Zafar : Bloody Daddy : What ‘Masala’  Went Wrong By Krishna Samiddha                                 In the world of spices, we have MDH masala, and in the realm of cinema, we have Bollywood masala films. Now, let’s talk about our beloved filmmaker, Ali Abbas Zafar, who has gifted us with cinematic treats …

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उत्तरा बावकर : रंगकर्मी का एक शोकगीत

उत्तरा बावकर : रंगकर्मी का एक शोकगीत –कृष्ण समिद्ध Captain! my Captain! our fearful trip is done” कल जब मैं उत्तरा बावकर की शोकसभा में था , तब वाल्ट व्हिटमैन की कविता ” O Captain! my Captain” की यह पंक्ति बार-बार मन में आ रही थी। 1865 में अब्राहम लिंकन की हत्या के बाद यह पंक्ति …

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Lipistick Boy शोध और स्क्रीनप्ले

The Lipistick Boy : शोध, स्क्रीनप्ले और सिनेमा – कृष्ण समिद्ध“सास्त्र न पढले, निपट चपाटे,बिन पूर्जा के उडन खटोलाबोले न आवे, जेहो पर ड्रामा।“(स्रोत: -1, लखी चंद मांझी,Nach bhikadi nach , Jainendra Dost-Shilpi Gulati, 2019)                                           …

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Robin Das

रोबिन दास और ब्रेख्त – सरलीकृत ज्ञान और रंगमंच

रोबिन दास और ब्रेख्त – सरलीकृत ज्ञान और रंगमंच-  कृष्ण समिद्ध                                                                    ”नये अभिनेता ब्रेख्त का कैसे इस्तेमाल करें?” यह चिंता रोबिन दास के …

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रणधीर कुमार : फाउल प्ले – एक समीक्षक का यात्रावृतांत

फाउल प्ले – एक समीक्षक का यात्रावृतांत  कृष्ण समिद्ध हर शहर की त्वचा होती है। और आप जब उस शहर में होते हैं, तब वह शहर अपने हाथों से आपको छूता है और हर हाथ की तरह अंगुली के निशान आप पर छोड़ता है। 2023, 31 जनवरी, जाता हुआ जाड़ा, चार बजा था, मैं भले ही …

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विकास बाहरी : खिड़की : फैंटेसी और रंगमंच

दीवार में एक ‘खिड़की’ नहीं थी : फैंटेसी और रंगमंच आलेख – कृष्ण समिद्ध                                                                       विकास बाहरी द्वारा लिखित ‘खिड़की’ पूरा ‘बाइपोलर …

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संजय उपाध्याय – शारदा सिंह : भागी हुई लड़कियाँ

भागी हुई लड़कियाँ : रंगमंच पर कविता के पुनर्जन्म की चुनौतियाँ  कृष्ण समिद्ध “Thou Whose Spell Can Raise the Dead ” मतलब “तू ,जिसका मंत्र, मृतकों को उठा सकता है।” कविता भी लार्ड बायरन की उक्त कविता के मंत्र की तरह होती है।( संदर्भ -1 Page -26, SAUL, HEBREW MELODIES , LORD BYRON, JOHN MURRAY, ALBEMARLE …

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परवेज अख्तर – साला मैं तो साहब बन गया

 अर्थों का विकल्प : मोलियर और साला मैं तो साहब बन गया – कृष्ण समिद्ध                                                                      “शेक्सपियर के साथ कुछ भी कर लो, …

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