“ समय हमेशा ज्यादा जटिल होता है, ज्यादा बड़ा होता है, ...आप उन सबको नहीं समझ सकते बस रियेक्ट कर सकते हैं, उसको काउंटर करना कविता में बहुत आसान नहीं , कविता उस काम को करने में समर्थ नहीं है..”
“लिखने का कोई जेंडर नहीं होना चाहिए… पुरुष शायद विवरण बहुत अच्छा दे सकता है। He is very good narrator and women is very good depicter .”
“……अगर आज प्रेमचंद्र होते तो वह मेहता और मालती दोनों चरित्रों का जरूर पुनर्लेखन करना चाहते क्योंकि गोदान में वह दोनों चरित्र आज भी मुझे कन्विंस नहीं करते….”
ममता कालिया
“हमारे अंदर भाषा का एक अहंकार है और हम सोचते हैं कि हम सब चीजों को भाषा में पुकार सकते हैं…… हमें ग़लतफ़हमी हो गयी है कि हम हर चीज को नाम दे सकते हैं….. पछियों की भाषा हम नहीं जानते…..पेड़ों की भाषा हम नहीं जानते…. हम समझते है कि हमारी ही भाषा सर्वश्रेष्ठ है…(एक तो ये) इस भाषा के अहंकार को …उनसे हमें बाहर आना चाहिए।”